Hindi book

 Page 1 of 11

भोली

"बधाई हो बाबूजी भोली बबबिया का ब्याह तय हो गया", नौकर रमेश ने ये कहते हुए आदशश बाबू को उनकी बबबिया का ररश्ता पक्का होने की बधाई दी। आदशश बाबू सुबह समाचार पत्र पिते हुए हल्की नीींद की झपकी ले रहे थे बक अचानक उस बधाई से आदशश बाबू अचानक से तन्द्रा से बाहर आए और समाचार पत्र को नीचे करके बोले, "अरे रमेश, तुम! गााँव से कब लौिे। गााँव में सब कुशल मींगल तो है?"

"बस बाबूजी आपकी और मालबकन की कृपा से सब कुशल मींगल है। आपने तो बताया नहीीं, लेबकन मुझे पता चला अभी दो बदन पहले ही आपने भोली बबबिया का ब्याह तय कर बदया। कैसा पररवार है? लाका कैसा है? लाका करता क्या..."

"अरे बस-बस तुमने तो आते ही एक के बाद एक प्रश्न लगा बदए, सााँस तो ले लो" कहते हुए आदशश बाबू ने नौकर रमेश को रोक बदया।

आदशश: "भोली बबबिया के प्यारे काकाजी, पररवार बहुत ही अच्चा है। आप पररवार से भी भलीभााँबत पररबचत हो और लाके से भी।"

रमेश: "कौन हैं वो लोग, बाबूजी?"

आदशश: "यहााँ से आगे चौराहा है न वो पान वाला, उससे आगे जो चौक के सामने मींत्रीजी रहते हैं वो सुभाष बाबू।"

रमेश: "अरे वो सुभाष बाबू।"

आदशश: "हााँ जी वही सुभाष बाबू जो क्षेत्र के बवधायक भी रह चुके हैं। उन्ही का बेिा 'काव्य'। अभी बवलायत से बवज्ञान में परास्नातक करके लौिा है। सुभाष बाबू ने अपनी बेिी भोली को देखा होगा कभी चौराहे से गुऽरते हुए तो उन्होींने हमारे पास प्रस्ताव भेजा। लाका देखा तो हम ना नहीीं कर पाए। बहुत ही अच्चा लाका है। अपनी भोली के बलए सही रहेगा।"

रमेश: "बाबूजी अगर आप बुरा न मानें तो हम कुछ कहें।"

आदशश: "हााँ बोलो। तुम भी हमारे घर के सदस्य हो। तुम्हारा बनणशय भी हमारे बलए अहम है।"

रमेश: "बाबूजी, इस बात में दो राह हरबगऽ नहीीं है बक काव्य बहुत ही अच्चे लाके हैं। हमने छोिेपन में उन्हें देखा था, जब हम सुभाष बाबू के घर नौकरी करते थे और इसी

Page 2 of 11

वजह से हम उनके पूरे पररवार को भी बहुत अच्चे से जानते हैं। मींत्रीजी बेशक अच्चे इींसान हैं लेबकन घर में उनकी धमशपत्नी राबधका की चलती है। राबधका के सामने मींत्रीजी ठीक वैसे ही बेबस है जैसे कुल 8-10 बवबजत साींसद वाला बवपक्ष लोकसभा में। राबधका मालबकन बहुत ही लालची और िेिे स्वभाव की मबहला हैं। तो मेरी राय.."

आदशश: (बीच में बात कािते हुए) "रमेश तुम परेशान मत हो। ररश्ता पक्का करने राबधका भाभी भी सुभाष बाबू के साथ आई थी और उन्होींने आश्वस्त बकया था बक भोली वहाीं खुश रहेगी।"

"अरे रमेश तुम कब आए और आते ही क्या बातचीत करने लगे दोनोीं?" अचानक से शोभा, जो बक आदशश बाबू की धमशपत्नी थी, उन्होींने दोनोीं की वाताशलाप में बवघ्न डाला।

आदशश: “शोभा, हमारे रमेश को भोली बबबिया की बचींता लगी है। बोल रहा है बक राबधका सही मबहला नहीीं है, लालची और स्वाथी है।"

शोभा: “देखखए जी। हमें भी इस बात का डर है। अभी तो ररश्ता पक्का बकया है। आगे कोई नाजायऽ मााँग कर दी तो हम कहााँ से उनकी मााँगें पूरी कर पाएींगे। और बिर मााँगो का कोई अींत नहीीं होता। क्या भरोसा अगर कल को भोली को इन्ही माींगोीं को लेकर परेशान करने लगे तो? उनकी तो पहुाँच भी बहुत है। आप क्या नीबतपरक तरीकोीं से चलने वाले ईमानदार बाे बाबू। आपकी ईमानदारी की वजह से आज हम इस छोिे से मकान में ही पूरी उम्र गुऽार बैठे और आपके दफ़्तर के छोिे से छोिे बाबू के आबलशान घर पर घर बन गए।“

आदशश: “बस करो शोभा। बवषय मेरी ईमानदारी नहीीं, बवषय है भोली का भबवष्य और मुझे सुभाष बाबू पर भरोसा है बक वह हमारी भोली का अपनी बेिी की तरह ध्यान रखेंगे। अब आप दोनोीं बेकार के बवचार बवमशश में अपना समय नष्ट न करें और जाकर भोली को उठाएीं, उसको महाबवद्यालय जाना है।“

"भोली बबबिया अरे ओ भोली बबबिया। उठ बबबिया कॉलेज नहीीं जाना क्या?" भोली को उठाते हुए रमेश भोली से बोलते हैं।"

"अरे काका आप। गााँव से कब आए।" इतना कहकर उत्साही भोली झि से नीींद से उठ गई। भोली और रमेश का एक दूसरे से गहरा लगाव था। भोली के बलए रमेश कोई नौकर न होकर उसके सगे काका से भी बिकर थे।

रमेश: “आज ही आया बबबिया। तू पहले ीिाीि तैयार होकर कॉलेज हो आ बिर शाम को दोनोीं काका-भतीजी खूब जमकर गबपयाऐींगे।“

Page 3 of 11

भोली: “हााँ काका। आपसे ढेर सारी बातें हैं करने को। शाम को करती हाँ। आज कॉलेज जाना भी ऽरूरी है वरना छुट्टी कर लेती। परीक्षा िॉमश जो भरे जा रहे हैं।“

रमेश: “कोई बात नहीीं बबबिया। पहले पिाई देखो।“

भोली वाबणज्य में स्नातक पाठ्यक्रम में बितीय वषश की बवद्याबथशनी थी। 20 वषीया वो युवती मृगनयनी, लाबलमायुक्त कपोलोीं वाली, गुलाबी अधरोीं वाली, घुाँघराले बाल और सुडौल शरीर की स्वाबमनी थी। इस उम्र में उसके अब तक के सौींदयश की पराकाष्ठा थी। भोली यथा नाम तथा गुण वाली कन्या थी। भोले स्वभाव के चलते उसका नाम रमेश ने ही भोली रख बदया। यथाथश में उसका नाम स्नेहा था। भोली बचपन से ही बाी मेधावी थी और कक्षा में हमेशा अव्वल आती थी। बसींत ऋतु में आने वाली बहार भोली के चेहरे पर हमेशा से और हर ऋतु में अनुभव की जा सकती थी।

भोली अपना तैयार होकर, नाश्ता इत्याबद करके घर से कॉलेज के बलए प्रस्थान कर जाती है। लेबकन आदशश बाबू के मन में रमेश और शोभा वाला सींशय घर कर रहा था और आखखर क्योीं न करता, रमेश यहााँ से पहले 10 साल सुभाष बाबू के यहााँ काम करके आया था तो उससे बेहतर उनके पररवार के बकरदारोीं का चररत्र बचत्रण स्वयीं वही लोग ही कर सकते थे, अन्य कोई नहीीं। क्योींबक कहते हैं इींसान का सबसे अच्चा मूल्ाींकनकताश वह स्वयीं होता है। स्वयीं को आप बजतना अच्चे से जानते हो शायद ही कोई हो जो आपको उससे बेहतर पहचान सके। लेबकन बिर भी आदशश बाबू खुद के मन को एक बदलासा, एक साींत्वना देने में लगे थे बक भोली के भाग्य पर ये अींधकार कभी हावी नहीीं हो सकता आखखर ईश्वर ने बेिी दी है तो कुछ अच्चा ही सोचा होगा। सोच ही रहे होते हैं बक अचानक दरवाऽा खिकता है।

आदशश: (तीव्र स्वर में) “अरे रमेश! देखना तो कौन है दरवाऽे पर......”

रमेश: “आया बाबूजी।“

रमेश दरवाऽा खोलते हैं और सामने शुभाष बाबू और उनकी धमशपत्नी राबधका को खाा पाते हैं।

सुभाष: “अरे रमेश तुम कब आये गााँव से?”

रमेश: “माबलक, आज ही सुबह आया था। अींदर आइये माबलक मालबकन।“

आदशश: “कौन हैं रमेश, दरवाऽे पर?”

रमेश: “बाबूजी सु...”

Page 4 of 11

सुभाष: (रमेश को रोकते हुए) “आदशश बाबू, हम और हमारी धमशपत्नी, राबधका, आये हैं।“

आदशश बाबू नींगे पैर ठीक उसी तरह दरवाऽे की ओर दौा पाते हैं, जैसे िाररकाधीश अपने परम बमत्र सुदामा के बलए दौाे होींगे। ीऺश बस इतना था बक आदशश बाबू का घर उतना बाा नहीीं था और दूसरा यहााँ आदशश बाबू सुदामा थे और सुभाष बाबू िाररकाधीश।

आदशश: “अहो भाग्य। अींदर आइये सुभाष बाबू, भाभी जी। अरे सुनती हो शोभा, सुभाष बाबू और राबधका भाभी आए हैं।“

इतना कहकर आदशश सुभाष और राबधका को अबतबथ कक्ष में बैठा देते हैं। वहीाँ शोभा भी आ जाती हैं। लेबकन शोभा के मुखमण्डल पर बचींता की लकीरे साी साी देखी जा सकती है। आखखर बचींबतत हो भी क्योीं न, बबना बकसी पूवश सूचना या बनमींत्रण के भोली के भावी सास ससुर उनके ़रीबऻाने में जो पधारे थे।

आदशश: "रमेश ऽरा सुभाष बाबू और भाभीजी के बलए जलपान की व्यवस्था तो करो।"

सुभाष: (रमेश को रोकते हुए) "अरे रुको रमेश। आदशश बाबू, हम यहााँ जलपान करने नहीीं, कुछ आवश्यक बात करने आए हैं।"

शोभा आदशश बाबू की ओर बचींतापूणश दृबष्ट से देखने लगती हैं। आदशश बाबू के चेहरे पर भी अब एक अजीब सी बचींता स्पष्ट जान पा रही होती है। शायद रमेश ने जो बचन्ता व्यक्त की थी, वही सही तो नहीीं। ऐसा सोचते हुए आदशश सुभाष को कहते हैं: "हााँ जी बताइये, सुभाष बाबू, आखखर ऐसी क्या बात है बजसके बलए स्वयीं आपने आने का कष्ट बलया।"

सुभाष: "अजी कष्ट कैसा। ये बात तो बताने हमें स्वयीं ही आना था। वैसे भोली कहीीं नऽर नहीीं आ रही?"

आदशश: "भोली अपने महाबवद्यालय गई है, सुभाष बाबू। आज उसके परीक्षा िॉमश भरे जाने हैं। वैसे बताइये न आप कौन सी बात की बात कर रहे हैं?"

सुभाष: "आदशश बाबू, हमारे पखण्डत जी ने अगले महीने की प􀇄ीस तारीऻ शादी के बलए उपयुक्त बताई है। बता रहे थे अच्चा मुहतश है उस बदन। उसके बाद सीधा 3 महीने बाद का मुहतश है। बाकी आप और भाभी जी बताएीं बक आप लोग क्या सोचते हैं?"

आदशश: "सोचना क्या सुभाष बाबू, शादी तो करनी ही है लेबकन इतनी जल्दी सब व्यवस्था कैसे हो सकेगी?"

Page 5 of 11

राबधका: "अरे भाईसाहब, इतना क्या सोचना आजकल तो इण्टरनेि का युग है आप ऑनलाइन आडशर करो और सामान िि से आपके सामने। न्यौता भेजना हो तो ईमेल और पचास तरीके हैं। सब हो जाएगा आप तो बस अपनी स्वीकृबत दीबजये।"

आदशश: "क्योीं तुम क्या कहती हो शोभा?"

शोभा: "आप सब जैसा सही समझें।"

राबधका: "तो भाईसाहब तारीऻ पक्की रही इसी बात पर मुाँह मीठा नहीीं करवायेंगे?"

आदशश: "हााँ-हााँ क्योीं नहीीं? अरे रमेश ऽरा बमठाई का डब्बा तो ले आओ"

रमेश: "लाया आदशश बाबू।"

इसी के साथ भोली बबबिया का काव्य के साथ बववाह की बतबथ अगले माह की प􀇄ीस तारीऻ सुबनबित की गई। आदशों पर चलने वाले आदशश बाबू के सामने जो अब बदक्कत स्पष्ट थी वो इींतऽामात समय पर करने की और पैसोीं की थी। पैसोीं के बलए आदशश बाबू ने अपने बवभाग के अबधकारी से कुछ चार लाख रुपया उधार बलया। उनके अबधकारी ने भी उनसे बदले में कोई भी सामान बगरवी रखने को नहीीं बोला। ईमानदारोीं के बलए उनकी ईमानदारी ही उधारी का आधार बनती है। आखखर यही साख, यही पूाँजी तो आदशश बाबू ने कमाई थी।

भोली बबबिया को जब ये पता चला बक उसका साथ अपने मााँ बाप के साथ महऽ कुछ और बदन का बाकी है तो वो भी भावुक हो गई। रमेश काका ने उसे समझाया बक बबबिया तुम्हें आज नहीीं तो कल बकसी के साथ जाना ही था। काव्य अच्चे इींसान हैं, तुम्हारा बहुत ख्याल रखेंगे।

भोली: "आप लोगोीं बजतना?"

रमेश बनरुत्तर हो गए। पीछे से आ रहे आदशश बाबू ने कहा, "हमसे भी ज़्यादा।" और इसी के साथ भोली की तरि उन्होींने एक प्यार भरी मुस्कराहि सााँझा की। आखखर करते भी क्योीं न, आदशश बाबू एक बपता थे और चींद बदनोीं में अपनी बेिी को पराया होता वो स्पष्ट देख पा रहे थे। भोली सबकी लाडली जो थी। भोली का भोलापन भी मनोहाररणी था।

वहीाँ काव्य भी कींजी आाँखोीं वाला, सुन्दर नाक नक्श वाला, और सामान्य शरीर का स्वामी था। पढाई में औसत रहने वाला लेबकन दयालु और आदशश बाबू जैसा ही नीबतपरक था। समाज की मक़्क़ाररयोीं से परे साी सुथरे बदल और बवचार वाला युवक था काव्य। उसको कुछ बदन पहले ही पािी की तरि से बवधायकी का बिकि बमल रहा था

Page 6 of 11

लेबकन राजनीबत में उसकी कोई रूबच न होने के चलते उसने वो बिकि स्वीकार नहीीं बकया था। उसने भोली को बस एक ही बार देखा था और भोली की मासूबमयत और सुींदरता ने काव्य को भोली का प्रशींसक बना बदया था।

बदन पे बदन बनकलते जा रहे थे और आखखर वो बदन आ ही गया था जब बारात दरवाऽे पर आने को थी। आदशश बाबू रमेश को कहते हैं बक मेहमानोीं की आवभगत में कोई कमी न रहे इसकी बऽम्मेदारी तुम्हारी। रमेश भी आदशश को अपनी बऽम्मेदारी का बनवाशह करने का आश्वासन दे देते हैं। बक तब ही दरवाऽे की ओर बारात आगमन की सूचना शोभा को लगती है। शोभा और आदशश बाबू तमाम ररश्तेदारोीं के साथ बारात का स्वागत करने के बलए दरवाऽे पर आ जाते हैं। अगले ही पल बारात आदशश बाबू के दरवाऽे पर होती है। शहनाई पूरे जोश में बज रही है। सुभाष बारात के बीच से आदशश बाबू को हाथ का इशारा देकर अपने पास बुलाते हैं और कान में कुछ कहते हैं। आदशश बाबू उतरे चेहरे के साथ शोभा और रमेश के पास जाकर उन दोनोीं को अींदर कक्ष में चलने को कहते हैं।

शोभा: "बात तो बताइये आखखर हुआ क्या?"

रमेश: "हााँ बाबूजी, कुछ तो बोबलये।"

आदशश: "आप दोनोीं अन्दर चबलए। सब पता चल जाएगा।"

वहाीं िार पर बारात खाी है। जम कर उत्साही और मद्यप जश्न का आनींद ले रहे हैं। वहीाँ दूसरी ओर शोभा और रमेश आदशश बाबू के साथ अकेले कक्ष में चल देते हैं। कक्ष में जाते ही आदशश बाबू अींदर पाे आसान पर बैठने के प्रयास में बविल होकर बगर पाते हैं और उनकी आाँखोीं से आाँसू बहने शुरू हो जाते हैं। आदशश बाबू का ये हाल देखकर शोभा और रमेश बवह्वल हो उठते हैं और उन्हें झकझोरते हुए पूछते हैं बक क्या वो कुछ बताएाँगे बक आखखर हुआ क्या है?

आदशश: "शोभा, रमेश, मुझे सुभाष बाबू ने इशारे से अपने पास बुलाया था। बता रहे थे अपनी भोली मींगली है। ऐसे में शादी सींभव न होगी।"

शोभा: "क्या भोली और मींगली!"

रमेश: "अगर वो मींगली थी तो पहले क्योीं नहीीं कुण्डली बमलवाई उन लोगो ने, और बिर ये मींगल दोष का पता पहले ही तो चला होगा न, तो िार पर बारात लाने और वापस ले जाने की धमकी का प्रयोजन क्या है? क्या उन्होींने आगे कुछ नहीीं बोला बाबूजी? रोइये मत माबलक, बात बताइये।"

Page 7 of 11

आदशश: "रमेश, मैंने उनसे कहा बक अभी क्या हल है इसका, तो भाभी जी बोली पााँच लाख।"

शोभा: "पााँच लाख....!!"

रमेश: "बिर आपने क्या कहा?"

आदशश: "कहना क्या था, हमने उनसे कहा हम कहााँ से लाएींगे इतना पैसा? तो राबधका भाभी बोली, "इतने बाे बाबू को इतनी छोिी सी रकम में इतना सींकोच? और बिर पैसा क्या हाथ का मैल है, बस ब􀇄े खुश रहने चाबहए।" हमने उन्हें अपनी खस्तबथ बताने का प्रयास बकया लेबकन वो बारात लौिाने की धमकी दे रहे थे।"

शोभा: "देखा। हमारा शऺ सही बनकला। उनमें लालच था इसबलए उन्होींने यह ररश्ता तय बकया था। कैसे कैसे ढोींग कर रहे थे दरवाऽे पर आकर बक भोली बबबिया की मासूबमयत ने हमारा मन मोह बलया इसबलए ररश्ता करना है। हकीकत वही बनकली जैसा हम सोच रहे थे।"

रमेश: "मैं उन दोनोीं की रग रग पहचानता था इसबलए आगाह बकया था लेबकन आदशश बाबू आपके बवश्वास के आगे मैं मूक हो गया था। आगे आपका क्या बनणशय है?"

शोभा: "बनणशय क्या बारात लौिा दो। ऐसे बभखाररयोीं को अपनी बेिी सौींपने से बेहतर होगा अपनी बेिी को कुए में खुद से धक्का मार दूाँ। कहााँ से लाएींगे..."

आदशश: (शोभा को रोकते हुए) "नहीीं शोभा। ऐसा हरबगऽ न करना। दरवाऽे से बारात वापस होगी तो हमारी बकतनी बदनामी होगी और भोली बबबिया का भबवष्य?"

रमेश: "तो बाबूजी कऽे में डूब कर बभखाररयोीं से शादी करके कौन सा भोली बबबिया का भबवष्य उज्जवल हो जाएगा?"

शोभा और रमेश सही कह रहे थे। आखखर कोई मााँग थी तो सुभाष बाबू पहले भी कर सकते थे। आदशश बाबू के बस में होता तो वो शादी को हााँ कर देते और नहीीं होता तो उसी क्षण न कर देते लेबकन दरवाऽे पर बारात लाकर मााँग करना ये सब सुभाष बाबू के नेताबगरी के पैंतरे थे जो अब कई बऽन्दबगयोीं को तबाह करने जा रहे थे। सुभाष बाबू बहुत अच्चे से जानते थे बक आदशश बाबू अपनी इज़्ज़त की खाबतर जान तक दे सकते हैं इसबलए पााँच लाख की माींग करते वक़्त शायद उनकी जुबान लाखााई तक न होगी। लेबकन वहीाँ दूसरी ओर ईमानदारी की राह पर चलने वाले बाे बाबू पहले ही गले तक कऽे में आ गए थे और इस माींग के बाद शायद वो इसी कऽे में डूब कर मर सकते थे।

Page 8 of 11

लेबकन क्या ीऺश बकसी को? यह भारतीय समाज है जहााँ बह बह न होकर कोई एिीएम काडश होती है बजसकी सहायता से जब मऽी आये उसके बपताजी नाम की ATM मशीन से बजतना चाहे पैसा बनकाल लो।

वहााँ आदशश, शोभा और रमेश सभी सोचनीय मुद्रा में थे बक अचानक आदशश कहते हैं, "ये शादी होगी, हर हाल में होगी। मैं पैसोीं का बन्दोबस्त करके आता हाँ तुम शादी में बाराबतयोीं की आवभगत सम्भालो।"

शोभा: "लेबकन आप...."

आदशश: (शोभा की बात कािते हुए) "कुछ मत सोचो। मैं अभी गया और इींतऽाम करके लाया और हााँ भोली को इस सब का पता नहीीं चलना चाबहए।"

आदशश सुभाष बाबू और राबधका को वचन दे जाते हैं बक शादी आगे बिाओ, आपको आपके पैसे बमल जाएींगे। आदशश बाबू की वचनबद्धता और ईमानदारी के सामने सब नतमस्तक हो जाते थे ऐसे में सुभाष बाबू की क्या मजाल थी बक वह सींकोच कर पाते। सुभाष बाबू और राबधका की हरी झण्डी बमलते ही पूरी बारात बववाह स्थल में प्रवेश कर जाती है। जयमाला से लेकर सभी रस्में हो जाती हैं बक आदशश बाबू अभी भी आाँखोीं से ओझल हैं। हो भी क्योीं न, पााँच लाख रुपये कोई छोिी रकम भी तो नहीीं। और बिर कऽश में पहले से डूबे आदशश बाबू के बलए दुबारा ऺऽश लेना ऐसा ही था जैसे खुद अपने हाथोीं से अपने ही गले में िााँसी का िन्दा बााँधना। लेबकन भोली की ऻुशी से ज़्यादा उनके बलए और कुछ न था। तो लगे थे ऽमाने के आगे हाथ ीैलाने में। कोई कोई बहाना बना देता, तो कोई कुछ और बहाना। वहााँ कन्यादान का वक़्त आ गया था और रमेश और शोभा इस बात को लेकर बचींबतत थे बक अब सबसे क्या कहेंगे? कहााँ हैं आखखर आदशश बाबू?

तब ही पखण्डतजी कन्यादान के बलए लाकी के माता बपता को बुलाते हैं।

शोभा: "पखण्डतजी आदशश बाबू की तो तबबयत ठीक नहीीं थी इसबलए वो डॉक्टर के गए हैं। क्या अकेले मेरे अींत से कन्यादान सींभव है?"

भोली: "हााँ पखण्डतजी, बताइये न बक कन्यादान बबना बपता के सींभव है? दर असल मेरे बपता कुछ बभखाररयोीं का पेि भरने के बलए भीख का इींतऽामात करने चले गए हैं। लेबकन वो अज्ञानी इस बात का बोध नहीीं उन्हें बक पेि भरने से नीयत नहीीं भरा करती। जो आज भीख मााँग रहा है कल भी भीख ही मााँगेगा।"

सब भोली की बात सुनकर हक्के बक्के थे। अबधकाींश को तो वो बात समझ में भी न आई थी। लेबकन रमेश, शोभा, सुभाष और राबधका सभी स्तब्ध थे। रमेश और शोभा तो

Page 9 of 11

प्रश्नपूणश मुद्रा में एक दूसरे की ओर देख रहे थे बक आखखर भोली को पता कैसे चला। काव्य इस बात से अनबभज्ञ बस भोली की ओर ही देखा जा रहा था।

भोली: "आप सब यह सोच रहे होींगे न बक मैं क्या कह रही हाँ। मैं बताती हाँ आपको बक मेरा आशय क्या है? मेरे होने वाले सास ससुर जी ने दरवाऽे पर बारात लाकर बताया बक मेरी कुींडली में मींगल दोष है। और इस मींगल दोष का अमींगल सींभव है यबद मेरे बपताजी इनको पााँच लाख रुपये दे दें अन्यथा वो दरवाऽे से बारात वापस ले जाकर मेरे पररवार की इज़्ज़त बमििी में बमला कर मेरा और मेरे पररवार का अमींगल कर देंगे। आखखर नेताजी जो ठहरे। बाे उदार, पहुाँचे हुए बसद्ध लोग हैं मेरे ससुराली, मात्र पााँच लाख की रकम में मींगल दोष का बनवारण। वो चाहते तो दस लाख मााँग सकते थे या मेरे बपता से उनकी सााँसें। लेबकन नहीीं बस पााँच लाख। बबना ये सोचे बक ईमानदार इींसान के पास कहााँ से आएगा इतना पैसा। मेरे बाबूजी पहले ही कऽे में थे, लेबकन बेिी हुई थी न उनके यहााँ इसबलए उनका अमींगल तो समाज ने पहले बदन से ही सोच बलया था बस िल आज बमल रहा है..."

सुभाष: (गुस्से में) "ऐ लाकी! क्या बोले जा रही है?"

भोली: "क्योीं ससुरजी, कुछ कम बोला क्या, या झूठ बोला कुछ? आपका ऽमीर नहीीं जानता बक आपने क्या अनैबतक मााँग की है? मेरी शादी, मेरी बऽन्दगी का िैसला मेरा खुद का है और मैं इसी अबि को और यहााँ मौजूद एक एक शख्स को साक्षी मान कर इस शादी को इसी क्षण रोकती हाँ। बारात वापस जाती तो मेरे बपता की नऽरोीं में उनकी बेइज़्ज़ती थी, लेबकन बारात को धक्के देकर बनकालने में मेरे बपता की इज़्ज़त का पता नहीीं, पर मेरी जैसी हर उस शख्स की इज़्ज़त में चार चााँद लगेंगे बजनको भूखे भेबाये बस पैसोीं के बलए बह का दजाश देते हैं।“

शोभा: "बस कर मेरी बेिी.."

काव्य: "भोली, मुझे इस बारे में कुछ भी नहीीं पता था। कुण्डली तो मेरे सामने ही पखण्डत ने बमलाई थी। ऐसा कोई दोष नहीीं था बखल्क हमारे 28 गुण भी बमल रहे थे। मैं अपने मााँ बाप के बकए पर शबमिंदा हाँ, अगर सींभव हो तो हमें माी कर देना।"

सुभाष और राबधका क्रुद्ध हुए काव्य की ओर देख रहे थे, बक अचानक बववाह स्थल में हींगामा मच जाता है, "आदशश बाबू दुघशिनाग्रस्त हो गए हैं।"

सब लोग वहाीं से बाहर की ओर भागते हैं लेबकन सुभाष, राबधका, और काव्य अभी भी अींदर ही हैं। काव्य अपने मााँ बाप से हाथ जोाकर कहता है, "आपने जीवन भर कमाई

Page 10 of 11

में कौन सी कसर छोा दी जो आज ये प्रपींच रच बदया। आज आप दोनोीं की वजह से आदशश काका मौत के मुाँह के पास पहुाँच गए हैं उन्हें कुछ भी हुआ तो आपका मेरा सम्बन्ध भी आप ऻत्म समझना।" और इतना कहकर काव्य भी बाहर की ओर भागते हैं। राबधका काव्य काव्य करके काव्य को रोकने का प्रयास करती है लेबकन बविल हो जाती हैं। अतः सुभाष और राबधका भी बाहर की ओर चले जाते हैं। बाहर आदशश बाबू लह लुहान पाे होते हैं। सुभाष बाबू जैसे ही आदशश बाबू के पास पहुाँचते हैं, आदशश बाबू जेब से खून में सने कुछ पत्र मुद्रा (नोि) सुभाष बाबू की ओर देते हैं। दुघशिना की तकलीि में ददश की कराह के साथ बोलते हैं, "सुभाष बाबू, ये लीबजये, बगन लीबजये। पूरे पााँच लाख हैं। अब ररश्ता मत तोबाएगा। सुनो शोभा तुम सही कहती थी ईमानदारी की आींच पर बस दो वक़्त की रोबियााँ पकाई जा सकती है। मैंने अपना घर, दफ्तर के छोिे बाबू को, बगरवी रख बदया है, मुझे माी कर देना। भोली की शादी में कोई कसर...." और इसी के साथ आदशश बाबू गहरी बेहोशी में चले जाते हैं। सुभाष बाबू आनन् िानन में अपने प्रयासोीं से तत्काल आपात बचबकत्सीय सेवा आदशश बाबू को उपलब्ध करवाते हैं। वहााँ राबधका और काव्य भोली और उसकी मााँ शोभा को सींभालते हैं। शोभा भोली से पूछती है बक आखखर उसे ये सब कैसे पता चला था। भोली बताती है बक जब बाबूजी आप और रमेश काका इस बवषय पर बात कर रहे थे मैं उसी कक्ष के बराबर वाले कक्ष में थी और खखाकी नऽदीक होने के चलते आप सबकी एक एक बात श्रव्य थी। राबधका अपने बकए के बलए शबमिंदगी ऽाबहर करती है लेबकन भोली इस वक़्त कुछ भी सुनने समझने लायक खस्तबथ में नहीीं है और होती भी कैसे उसके बपता उसकी शादी की दहेऽ व्यवस्था में बऽन्दगी और मौत के बीच पााव पर झूल रहे हैं। शायद उसे मन के बकसी कोने में इस बात का मलाल भी था बक बपता को उसी वक़्त रोककर यबद बारात को तब ही लौिा बदया होता तो शायद इज़्ज़त चली जाती लेबकन बपता बच जाते। तभी रमेश बवश्रामालय में आकर सूबचत करते हैं, "भोली बबबिया, बाबूजी को होश आ गया है।" सब आदशश बाबू के उपचार कक्ष की ओर तेज गबत से चल पाते हैं।

भोली: "बाबूजी कैसे हैं आप?"

आदशश: (ददश में) "मैं ठीक हाँ मेरी ब􀇄ी।"

भोली: "बाबूजी अब मैं शादी नहीीं करुाँगी, आप सबके साथ ही रहींगी।"

आदशश: "नहीीं भोली। ऐसा नहीीं कहते। सुभाष बाबू अपने बकये पर शबमशन्दा हैं और मुझसे अभी माीी मााँग रहे थे।"

Page 11 of 11

राबधका: "हााँ बबबिया, शायद लालच की रौशनी ने हमारी आाँखोीं को उसी तरह दृबष्टबवहीन कर बदया था जैसे सूरज के तेज से व्यखक्त कुछ क्षणोीं के बलए दृबष्टबवहीन हो जाता है। पर तुमने हमारी आाँखें खोल दी। हम दोनोीं अपने बकए पर शबमिंदा हैं। वैसे तो माीी लायक हमारी हरऺत नहीीं थी लेबकन अगर तुम हमें माी करके हमारे घर में बह बनके आओगी तो हमारे बलए ीक़्र की बात होगी।"

आदशश बाबू, मााँ शोभा, रमेश काका सब भोली को बहुत समझाते हैं लेबकन भोली ने भी बनणशय कर बलया था बक वह बकसी भी खस्तबथ में अब शादी नहीीं करेगी। यबद लाकी की शादी का मतलब बपता के हाथ में भीख का किोरा थमाना ही भारतीय समाज की एक मात्र मींशा होती है तो शायद भोली का बनणशय गलत नहीीं था। तदोपरान्त राबधका और सुभाष बाबू उसे अपनी बेिी मान लेते हैं। सुभाष बाबू अपनी पहुाँच से आदशश बाबू का घर बचवातें हैं और उस घर पर बलया गया ऺऽश स्वयीं अपने पास से चुकाते हैं। काव्य पािी की तरि से उसे दी जा रही बवधायकी की बिकि स्वीकार कर लेता है और आगामी कुछ वषों में उसका बववाह, बबना लाकीवालोीं से एक पैसे की मााँग बकये, बहुत ही सादा तरीके से हो जाता है। भोली (स्नेहा) पुबलस में अबधकारी पद पर चयबनत हो जाती है लेबकन भोली आज भी अपने बनणशय पर कायम है उसने कभी भी शादी का सपने में भी नहीीं सोचा। भोली न जाने बकतनी भोली के जीवन में अपनी कमाई से रींग भरती जा रही है।

शायद बेिी का बाप होना लालची समाज में बकसी अबभशाप से कम नहीीं होता। भोली जीवन के यथाथश को भली भााँबत समझ गई। उस घिना ने भोली को सच में बाा कर बदया था।...

लेखक

मयंक सक्सैना 'हनी'

पुरानी विजय नगर कॉलोनी,

आगरा, उत्तर प्रदेश – 282004

(वदनांक 05/अगस्त/2021 को वलखी गई एक कहानी)

Comments

Popular posts from this blog

GK Questions

Prayer presentation