सम्राट अशोक
अध्माम 6
त ॊगय "मोद्धा
बायत, 262 ई.ऩू.
भैं भहान याजा अशोक का एक मोद्धा था, रेककन भैं कोई साधायण मोद्धा नह ॊ था. भैं द ननमा का सफसे भहान मोद्धा फनने की याह ऩय था!
भैं ससपफ एक रड़का था. रेककन सम्राट अशोक ने अऩनी सेना के कई अन्म मोद्धाओॊ के फीच भ झे देखा औय च ना.
सम्राट अशोक हय ददन हभाय पौज की कतायों भें से ग जयते थे. वो हभाया ननय ऺण कयते थे. वह अक्सय भ झ से फात कयते थे. आज का ददन कोई फह त अरग नह ॊ था.
"त ॊगय," सम्राट अशोक ने भ झे ऊऩय-नीचे देखते ह ए कहा. "त भ ननडय औय साहसी रगते हो. त भ भें एक भहान मोद्धा फनने की मोग्मता है."
दूसये म वा मोद्धाओॊ ने भ झे ईर्षमाफ से देखा. भैंने क्मा ककमा था? भैं याज्म का सफसे अच्छा मोद्धा था. वे कबी बी भेय भहानता की फयाफय नह ॊ कय सकते थे.
"भैं आऩके सरए ज़रूय रड़ूॊगा, सम्राट," भैंने सम्राट अशोक से कहा.
रेककन भ झे ऩता था कक मह सच नह ॊ था. भैं सम्राट अशोक के सरए रड़ाई नह ॊ रड़ता. भैं ख द के गौयव के सरए रड़ता. भेया सफसे फड़ा सऩना था - भगध याज्म भें सफसे कभ उम्र का जनयर (सेनाऩनत) फनना.
सम्राट अशोक के जाने के फाद, एक म वा मोद्धा नॊद भेये ऩास आमा. " सम्राट अशोक का ध्मान आकर्षफत कयने के सरए त भने क्मा ककमा?" उसने ऩूछा.
नॊद भ झे प्रशॊसा की ननगाह से देखता था औय अक्सय भेये ऩीछे-ऩीछे चरता था. वो बी भेये जैसा ह फनना चाहता था, रेककन शामद वो सॊबव नह ॊ था.
भैं उसे अऩनी कहानी फताऊॊगा. रेककन उससे ऩहरे, भैं अऩनी तरवाय सीधा कयके अऩनी सोने की फेल्ट को कसता था. भैंने अऩनी ढार भें अऩने चेहये को ननहायता था. भैं ख द को एक स ॊदय, साहसी रड़के जैसा देखता था. कई अन्म रड़के भेये ऩास इकट्टे हो जाते थे. वे अचयज कयते थे कक भैं क्मा कय यहा हूॊ.
"ठीक है?" नॊद ने हठ ककमा. "हभें मह फताओ कक सम्राट अशोक ने त म्हें म द्ध भें अऩने फगर भें सवाय कयने के सरए क्मों च ना? हभें वो कहानी स नाओ!"
भैं उसे अऩनी कहानी स नाता था. सच भें वो एक अद्भ त कहानी थी, बरे ह उसके क छ दहस्से झूठे थे.
"भैंने कई फाय सम्राट अशोक को भौत से फचामा," भैंने श रू ककमा. "एक फाय वो अकेरे ऩेड़ों के फीच भें से जा यहे थे. वो गहये सोच भें डूफे थे. उन्होंने फाघ को उछरते ह ए नह ॊ देखा. रेककन भैंने उस फाघ को देखा. भैंने त यॊत अऩना बारा उठामा ..."
भैं क छ देय रुका. क्मा वो तीय था? भैंने वो कहानी कई फाय स नाई थी, रेककन भैं शामद उसके क छ अॊश बूर गमा था.
भेये साथी कहानी खत्भ होने का इॊतजाय कय यहे थे. एक रड़के वेद, ने अधीयता से अऩना ऩैय दहरामा.
"त ॊगय!" याजा अशोक ने फीच भें टोकते ह ए कहा. "भैं अऩने पौजी जनयरों से सभरने जा यहा हूॊ. भैं चाहता हूॊ कक त भ बी भेये साथ चरो. त भ एक स्भाटफ रड़के हो. त भ भेय क छ भदद कय सकते हो."
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